सिंगापुर से आगे, अफ़ीम की गंध आने लगी।
ईमानदार अँग्रेज़ इसे अच्छी तरह जानता था।
जेनेवा में वह इसका छिपकर व्यापार करनेवालों की
निन्दा करता था,
लेकिन उपनिवेशों में हर बन्दरगाह
कानूनी धुएँ के बादल उठाता था।
...
मैंने चारो ओर देखा। दयनीय शिकार
दास, रिक्शों और बागानों से आए कुली,
बेजान लदुआ घोड़े,
सड़क के कुत्ते,
दीन दुष्प्रयुक्त जन।
यहाँ, अपने घावों के बाद,
मानव नहीं बल्कि पाँव होने के बाद,
मानव नहीं बल्कि लदुआ पशु होने के बाद,
चलते-चलते और पसीना बहाते-बहाते रहने के बाद,
ख़ून का पसीना बहाने, आत्मा से रिक्त होने के बाद,
वहाँ पड़े थे,
...अकेले,
पसरे हुए,
अन्त में लेटे हुए, वे कठोर पाँवों वाले लोग।
हरेक ने भूख का विनिमय
आनन्द के एक धुँधले अधिकार के लिए किया था।
अरुण माहेश्वरी द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित