पूरा हो चुका चाँद
झर चुकी सेमल और टेसू की सुर्ख़ी
कनक की पकती हुई लोच में
महुआ की तीक-सी वह कभी-कभी दिख भी जाती है
लम्बे कश में बदल देती हुई इस दृश्य के ऐश्वर्य को
फिर दिख जाती है कोई जुएँ बीनती हुई माँ
नीले घर के उघड़े हुए काँधे की ओट में
और लो
वो गई वह नंग-धड़ंग भोर में उड़ती-पड़ती
सूखे बालों के अनमने गोदुए में
अण्डों से लबालब भरी हुई