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पूर्णता की ओर / हरीसिंह पाल

हमारे कार्य,
हमारे प्रयत्न,
एक सीमा के अंदर हैं
कहीं भी, कभी भी लगता नहीं
हम पूर्णता के निकट आ गए हैं,
यह अधूरापन ही तो पूर्णता
की ओर ले जा रहा है।
असंतुष्टि ही नवीनता
तक पहुंचाती रही है।
अभाव ही हमें प्रयत्नशील
और उद्यमी बनने की प्रेरणा देता है
यही बनाता है हमारा कर्तव्य
और उत्तरदायित्व,
इसी से पाते हैं अधिकार।
प्रयत्न के प्रति जागरूकता
ही तो जीवन का नाम है
यह जागरूकता ही तो
हमें 'हम' बनाती है
यह वैसी ही होती है
जैसा हम करते हैं
जैसा हम विचारते हैं।
यही हमें पूर्णता
की ओर
ले जाती है।