Last modified on 5 अप्रैल 2014, at 00:41

पूर्ण समर्पण हो सदा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

पूर्ण समर्पण हो सदा स्व-सुख-कामना-हीन।
गुण अनन्त दीखे सदा, मन गुण-दर्शन-लीन॥
कहीं न दीखे तनिक भी प्रियतममें कुछ दोष।
कभी न मन में हों तनिक क्षोभ, निराशा, रोष॥
देता मैं कुछ भी नहीं, को‌ई उन्हें पदार्थ।
देते रहते वे सतत, यह अनुभूति यथार्थ॥
प्रियतम जो देते मुझे अवहेला, अपमान।
संकट-क्लेश महान, यह है उनका रस-दान॥
है उनकी आत्मीयता, है प्रियतम का प्रेम।
ध्वंस न हो सकता कभी, यही प्रेम का नेम॥
पल-पल बढ़ता ही रहे, पल-पल नव आनन्द।
पल-पल नित नव रस-सुधा मधुर पान स्वच्छन्द॥