पूसक घाम तु इत्गा नखरा दिखो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।
माया की भुकी पैंदी यु धरती।
धार पिछना ते मुखडी लुको ना।।
गिच कताड़ि रात खड़ी ह्वयीं समणी।
गर्व से गरु गात नि कण जुग् जम्मे ना।
द्वी दिन घडी पोर जेठ ऐ जालु।
फिर तेरी सैे क्वी ज्यु-जमाण सौंण्या ना।
बगत बगत की बात अर,
बगत बगत का फेर होन्दन्
तेरा जन तपोंण वाळा भोत देखी,
जु सौंण कुयेड़ि मुखडी लुक़न्दन्।
पूसक घाम् इत्गा इतरो ना।
बगत सब्युं की औंदी इत्गा तरसो ना।।