खिलखिलाये न सही, पर
मोनालिसा की तरह
मुस्कुरायेगी अभी
पूस की धूप।
पड़ गया पाला हो,
सो गये हों खेत,
सोई फ़स्लों को जगायेगी
पूस की धूप।
तमाम स्वाद रंग
और सुगन्ध के सागर
पेड़ पौधों में उतारेगी यही
पूस की धूप।
घना अँधेरा हो,
मन में दिमाग में दिल में
जगमगायेगी निडर लौ की तरह
पूस की धूप।
भूले भटके जो कभी
आई खुशी
याद आयेगी हमें
पूस की धूप।
सुबह जब आनी हो
आती रहेगी ऐ दोस्तो
उसके पहले चली आयेगी
पूस की धूप।