धीरे-धीरे
सूखती जाएँगी नदियाँ
रेत, पत्थर बनकर मकानों में सदियों तक जमा रहेगा
धीरे-धीरे
टूटते जायेंगे पहाड़
उनके टुकड़े सड़कों पर बिछे रह जाएँगे
धीरे-धीरे
क्षीण होती जाएगी ओजोन की परत
धीरे-धीरे आक्सीजन की जगह लेंगी ज़हरीली गैसें
धीरे-धीरे
बढ़ती जाएगी तपन पृथ्वी की
धीरे-धीरे
सूखते जाएँगे पेड़
और लुप्त होती जाएँगी वनस्पतियाँ
धीरे-धीरे
मनुष्यों और पशुओं की लाशों से पटती जाएगी धरती
धीरे-धीरे
सब कुछ विलीन हो जाऐगा
इस तरह
धीरे-धीरे नष्ट होती जाऐगी सृष्टि
मिट जाऐगा सभ्यता का वजूद
फिर भी पृथ्वी जीवित रहेगी
अपनी ही धूरी पर घूमती हुई
अपने अन्य साथी ग्रहों की तरह
ऐसे में अचानक
सदियों बाद
किसी दूसरे सौरमंडल से आऐगा एक अंतरिक्ष यान
उसमें खोजियों का एक दल
वह कई कोणों से पृथ्वी के चित्र लेगा
धरती के मिट्टी के नमूने इकट्ठे करेगा
और गहन अनुसंधान और परीक्षण के बाद कहेगा -
पृथ्वी पर कभी जल भी था !
पृथ्वी पर कभी जीवन भी था !