पुरुषों से भरा वह टेम्पो रुका
और कोने की खाली जगह में
सकुचा कर बैठ गई है एक स्त्री
सहसा... थम गऐ हैं
पुरुषों के बेलगाम बोल
सुथर गई है देहभाषा
एक अनकही सुगंध का सूत
रफू कर रहा है पाशविकता के छेद
अनुभूति दूब सी हरी हो चली है
कुछ ऐसा ही तो हुआ होगा
शुरु शुरु में
दहकती पृथ्वी के साथ भी।।