पहाड़ियाँ अपने घरों के साथ डूबती हैं नदी में जहाँ उनके
अक़्स हैं।
वे सब अपने अक़्सों की बस्तियों में ही जल-मग्न होंगे।
उनका दुख भी कुछ देर अनुगूँज की तरह सुनाई देगा।
पृथ्वी सिर्फ़ एक नदी होगी, ख़ाली नौकाओं के साथ वैसे
ही धीेमे-धीमे घूमती हुई।