रोज सवेरे कटलिस चूमूँ
रस्ता पकड़ी खेत के
बगल में टाँगूँ सतवा पानी
और झटक पटक के टाँग बढ़ाऊँ
आधा सपना घरे देखूँ
आधा देखूँ खेत में
सोच रहा हूँ
पेट
तुम्हारे खात क्या न करूँ
रोज सवेरे कटलिस चूमूँ
रस्ता पकड़ी खेत के
बगल में टाँगूँ सतवा पानी
और झटक पटक के टाँग बढ़ाऊँ
आधा सपना घरे देखूँ
आधा देखूँ खेत में
सोच रहा हूँ
पेट
तुम्हारे खात क्या न करूँ