पेड़ !
अब तुम
एक मेज हो ।
अब तो तुम
रूप नहीं बद्ल सकते
नहीं ले सकते विस्तार
तो भी
हमें
डर क्यों है ?
हमारा डर
कहीं
तुम्हारा
फ़ल तो नहीं ?
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
पेड़ !
अब तुम
एक मेज हो ।
अब तो तुम
रूप नहीं बद्ल सकते
नहीं ले सकते विस्तार
तो भी
हमें
डर क्यों है ?
हमारा डर
कहीं
तुम्हारा
फ़ल तो नहीं ?
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"