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पेड़-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

औझे ने बताया
और मैंने
ठोक दी
तुम्हारे तन पर
कील
केवल
अपनी ज़ाड़ की
पुरानी पीड़ से
मुक्ती के लिए ।

पेड़ !
मेरी पीड़ तो
अभी भी है
अपनी सुनाओ !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"