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पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है / 'सुहैल' अहमद ज़ैदी

पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है
लब पे है नाम-ए-ख़ुदा दिल में यक़ीं कितना है

हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बाद
बुल-हवस जानते हैं कोई हसीं कितना है

देखता है वो मुझे लुत्फ़ से गाहे गाहे
आँकता है कि ग़नी ख़ाक-नशीं कितना है

एक तख़ईल के जंगल पे तसर्रूफ़ था पे अब
ये इलाक़ा भी मिरे ज़ेर-ए-नगीं कितना है

तुम ने किस शख़्स की तस्वीर बनाई है ‘सुहैल’
रंग कितना है कहीं और कहीं कितना है