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पेड़ बहुत उपकारी / मेराज रज़ा

हरे-हरे पत्तों वाला मैं,
पेड़ बहुत उपकारी!
हरी-भरी धरती है मुझसे,
मैं कितना हितकारी!

फूल-पत्तियों और फलों से,
है गुणकारी काया!
थककर राहगीर जब आते,
पाते ठंडी छाया!

पाकर खूब हवाएं ताज़ी,
चलती जीवन-धारा!
हमें काट क्यों लाते अपने,
जीवन में अंधियारा!