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पैठी हँसी साँस में / कुमार रवींद्र

सब कुछ खोया
सिर्फ तुम्हारी हँसी हमारे पास, सखी

वही महानिधि
रहे सँजोये बरसों हम
उससे ही होता अनुरागी
हर मौसम

उसी हँसी की
मीठी धुन से हर आहट है खास, सखी

वंशी हुई कभी
कभी है वह सन्तूर हुई
पैठी हँसी साँस में ऐसी
मिटी दुई

हुई आरती-सी है
अपने आँगन की बू-बास, सखी

कोरी धूप हँसी की -
उसके उजियारे
कनखी-कनखी तुमने
चन्द्र-पर्व पारे

रचे उन्हीं से
हमने कितने ही फागुन के रास, सखी