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पैबंद / पूनम सूद

फटकने न देती थी माँ मुझे
कोठी के पास,
जहाँ मांझती थी वे झूठे बर्तन
स्वयं भी पीछे रस्ते से जाती आती;
'मखमल में टाट का पैबंद' हैं हम
मुझे कई बार बता कर समझाती...
अपने टाट होने का, था न मुझे गम
पर मखमली शोभा भी थी पसंदं

बच्चे की जन्मदिन पार्टी थी कोठी में
आमंत्रित बच्चों को बांटे गये मंहगे टिफिन,
एक टिफिन माँ को भी मेरे लिये दिया,
जिसे पाकर खिल उठा मेरा मन

वह टिफिन मुझे इतना भाया,
सिरहाने रख रात में, उसे संग सुलाया
सुबह रखने को कुछ न था टिफिन में,
फिर भी दिखावे खातिर उसमें
भूख पैक कर, उसे पाठशाला लाया

कुछ सहपाठियों ने ललचायी नज़र से देखा टिफिन
कुछ ने ईष्या से,
कुछ ने जलनवश मास्टर को बताया;
मंहगा नया टिफिन देख
मास्टर ने ज़ोर का मुझे थप्पड़ लगाया
कान उमेठ कर ज़बरन कबूल करवाया
कि मंहगा टिफिन मैंने कहीं से है चुराया

टिफिन पाठशाला में हो गया जमा
घर आ, बिलखते हुए
मैंने माँ को हाल सुनाया...
हिचकियों को बाँधते, पूछा माँ से,
' कहाँ का है ये न्याय?
गरीब टाट बेचारा,
घिस के बेशक उधड़ जाये, पर-
मखमल का छोटा-सा पैबंद
बदरंग टाट पर न लगा पाये। '