ज़िन्दगी के चीर में
जन्म से
बुढापे तक
कई पैबन्द लगते हैं
इतने
कि ज़िन्दगी ही
पैबन्द हो जाती
भोली आत्मा
ढकती है
आत्मा राम बेचारा
करे क्या ?
ज़िन्दगी के चीर में
जन्म से
बुढापे तक
कई पैबन्द लगते हैं
इतने
कि ज़िन्दगी ही
पैबन्द हो जाती
भोली आत्मा
ढकती है
आत्मा राम बेचारा
करे क्या ?