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पै‘लापै‘ल (3) / सत्यप्रकाश जोशी

आज थारै म्हारै परसेवा में
कोई भेद कोनी,
माठ कोनी।
थनै म्हारी पलकां सूं
बाव ढुळाऊं
तौ म्हारौ पसीनौ तौ आप ई सूख जावै।

पण पै‘लापै‘ल
हेम रै उनमांन
थारा ठाडा दरस सूं
म्हारा पसीना में जांणै आदण लाग्यौ।
थूं पीताबंर सूं
म्हनैं बाव करतौ ई गियौ
अर म्हारौ पसीनौ
नैणां-नैणां, पलकां-पलकां
अर रूं-रूं सूं
उफणतो ई गियौ।