दत्त चित्त
अपने आप में मगन
तुम लगा रही हो पोंछा ।
ख़ुशी में लहलहा रहा है घर का मन
निखर उठा है आँगन का भी चेहरा
पंछियों की चहचहाहट में
भर गया है नया रस ।
इस वक़्त फ़र्श पर
गन्दे पाँव चलना मना है
यूँ तुम रोकोगी सभी को
इस धरती पर भी
गन्दे पाँव चलने से ।
धरती को सुन्दर बनाने के लिए
बहुत ज़रूरी है तुम्हारा इस तरह डाँटना
कवियों को तुम्हीं से सीखना होगा
धरती को सजाने का यह हुनर ।