Last modified on 14 अप्रैल 2015, at 19:28

पोपलर वृक्ष की पत्ती / ग्योर्गोस सेफ़ेरिस

वह काँप रही है
बह रही हवा के ज़ोर से
बुरी तरह से काँप रही है वह

हवा से क्यों नहीं
काँप सकती वह नाव
वहाँ दूर समुद्र में
बहुत दूर
धूप में चमक रहा है एक द्वीप
और हाथ
पकड़ लेते हैं पतवार को मज़बूती से
बन्दरगाह तक पहुँचने के लिए
आख़िर तक खेना चाहते हैं नाव
थकी हुई आँखें बन्द होती जा रही हैं
और हवा सरसरा रही है समुद्र में

उतने ही भयानक ढंग से
काँप रही हूँ मैं
सरसरा रही हूँ हवा की तरह
यहाँ सफ़ेदे के पेड़ की छाँह में
वसन्त से शरद तक
नंगी खड़ी जंगल में
सरसरा रही हूँ मैं, मेरे भगवान !