1
पोर से छुआ
सिहर उठा ताल
होंठों से पिया
प्यास न बुझा सके
ताल में समा गए।
2
आपके सारे
दु:ख मैं ओढ लूँगा
इस तरह
जीवन की डोर को
तुझसे जोड़ लूँगा ।
3
तुम हो गंगा
तुम्हें छोड़ भला मैं
किधर जाऊँ
माथे तुझे लगाऊँ
या तुझमें समाऊँ
4
देह का धर्म
हो जाएँ एकाकार
होगा विलीन
प्राण बनें बाँसुरी
मिटे भाव आसुरी।
5
होंठों की प्यास
छू अधर तुम्हारे
हुई गहरी
मिले जो मधुपान
मिट जाए थकान।
-०-