जाह्नू बरुवा की फिल्म ‘सागरलै बहुदूर' देखने के बाद
माँझी के सपने खो जाते हैं
दिहिंग नदी की जलधारा में
जो ब्रह्मपुत्र में मिलती है
सागर तक पहुँचती है
वर्षा से पहले स्तब्ध प्रकृति
माँझी के चेहरे का रंग
नीला पड जाता है
सर्पदंश से पीड़ित मरणासन्न व्यक्ति की तरह
हेमिंग्वे का बूढ़ा आदमी
समुद्र किनारे से वेष बदलकर
कब आया दिहिंग किनारे हाट में
उसने नाम रख लिया
पोवाल दिहिंगिया
चप्पू चलाता है तो तनती हैं
चेहरे की शिराएँ
बाँसुरी की तान सुनकर
आहत होता है पहाड़ भी
नदी और पुल
पुल और सूनी नाव
माँझी और उसकी कुटिया
पराजय और विषाद
और
जूझते रहने की निरंतरता ...।