पौडर लगाये अंग गालों पर पिंक किये
कठिन परखना है गोरी हैं कि काली हैं।
क्रीम को चुपर चमकाये चेहरे हैं चारु,
कौन जान पाये अधबैसी हैं कि बाली हैं।
बातों में सप्रेम धन्यवाद किन्तु अन्तर का,
क्या पता है शील से भरी हैं या कि खाली हैं।
'वचनेश` इनको बनाना घरवाली यार,
सोच समझ के ये टेढ़ी माँग वाली हैं।
-(परिहास, पृ०-१०) वचनेश