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पौढ़े स्याम जननि गुन गावत / सूरदास

राग कान्हरौ


पौढ़े स्याम जननि गुन गावत ।
आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, कहि-कहि मन हुलसावत ॥
कौन पुन्य-तप तैं मैं पायौ ऐसौ सुंदर बाल ।
हरषि-हरषि कै देति सुरनि कौं सूर सुमन की माल ॥


श्यामसुन्दर सो गये हैं, माता उनका गुणगान करती हैं -`आज मेरा लाल गाय चराने गया है' बार-बार यह कहकर मन-ही-मन उल्लसित होती है । पता नहीं किस पुण्य तथा तप से ऐसा सुन्दर बालक मैंने पाया ।' सूरदास जी कहते हैं, बार-बार हर्षित होकर वे देवताओं को फूलों की माला चढ़ा रही हैं ।