Last modified on 11 जनवरी 2011, at 12:52

प्यार / केदारनाथ अग्रवाल

प्यार कहीं पत्थर के भीतर है जमा हुआ,
सदियों से छिपा हुआ;
प्यार कहीं झरने से झरता है खुला हुआ,
पानी में घुला हुआ;
प्यार कहीं बहता है नदियों-सा कूल तोड़,
चलता है लाज छोड़;

रचनाकाल: संभावित १९५७