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प्यार करना तुम / प्रेमलता त्रिपाठी

तिरंगा मान है अपना, इसी से प्यार करना तुम।
हृदय से और श्रद्धा स, े सदा सत्कार करना तुम।

भुला मतभेद मन के सब, हमें अब साथ चलना है,
जुड़ें सब देश हित में अब, यही उपकार करना तुम।

पड़ी घायल हुई जननी, छिड़ा संग्राम जन-जन में,
मिटे कटुता हृदय की सब, वही व्यवहार करना तुम।

शहीदों की शहादत को, कभी मनसे भुलाना मत,
अगर हो सामना अरि से, सदा संहार करना तुम।

मिलेगा मान जीवन में, कदम रख साहसी अपना,
खिला दो फूल पत्थर पर, चमन गुलजार करना तुम।

बुलाती गांव की माटी, हमारी शस्य जननी माँ,
कृषक हैं देश के गौरव, इसे स्वीकार करना तुम।

कहीं बरखा बहारें या, कठिन हो आपदा घेरे,
लगन से प्रेम सम्बल से, सरल हर द्वार करना तुम।