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प्यार की चाँदनी / मख़दूम मोहिउद्दीन

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हदि-ए-अश्के ख़ूँ<ref>रक्त के आँसुओं की भेंट</ref> ले के आया हूँ मैं
ख़ूँ बहाए वफ़ा दिल की सौग़ात क्या ।

जेब व दामाँ की उड़ने लगीं धज्जियाँ
जुर्म क्या, जुर्मे ग़म की मुकाफ़ात<ref>दंड</ref> क्या ।

इश्क़ की मश‍अलें, इश्क़ के वलवले
हमसफ़र, सुबह क्या, शाम क्या, रात क्या ।

चश्मे अहले हवस<ref>लालसा भरी आँख</ref> मुस्कुराती है गर
चश्मे अहले हवस मुस्कुराती रहे ।

इब्ने आदम को सूली चढ़ाते रहो
ज़िन्दगानी सरेदार गाती रहे ।

यादे याराँ में इक जामे ग़म और दो
रात की तीरगी सोज़ गाती रहे ।

दिल बढ़ाती रहे हाथ की नर्मियाँ
प्यार की चाँदनी जगमगाती रहे ।

शब्दार्थ
<references/>