प्यार की बीन पर पीर की रागिणी,
जो बजाने लगे, सो बजाते रहे!
अश्रु के मोतियों से जवानी मगन,
जो सजाने लगे, सो सजाते रहे!
तुम न जाने बिना हा, कहाँ पार है;
जिन्दगी की कठिन धार, मझधार में-
कागजों की बना नाव अरमान को,
मुद बहाने लगे, सो बहाते रहे!
जो कि अंतिम मिलन में विधुर-भाल पर
चुम्बनों-सी प्रिया के खिंची रह गयी,
प्राण, उस आमरण याद की रेख को,
जो मिटाने लगे, सो मिटाते रहे!
जो बुलाये बिना आ गया हो अतिथि,
नेह को डोर में हा, बँधा आप ही,
आगमन की कथा वह करुण कंठ से
जो सुनाने लगे, सो सुनाते रहे!
बेवफाई तुम्हारी वफा बन गयी,
खार गुल का पहरुआ बना जिस तरह!
मोम के तन कि मन से शिला के पिया,
जो लुभाने लगे, सो लुभाते रहे!
(28.5.54)