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प्यार की सरनाम ग़ज़ल / नरेन्द्र दीपक

प्यार की सरनाम ग़ज़ल गाता हूँ,
फिर वही बदनाम ग़ज़ल गाता हूँ।

सुकूँ मिले या आँसुओं का समन्दर
जो भी हो अंजाम ग़ज़ल गाता हूँ।

कोई फुहार छुए मन को इसलिए
ओ मेरे घनष्याम ग़ज़ल गाता हूँ।

माहौल कुछ बने मैं हँस के सह सकूँ
ये बहुत तेज़ घाम ग़ज़ल गाता हूँ।

बीते न कहीं सुबह की तरह उदास-सी
ये ज़िन्दगी की शाम, ग़ज़ल गाता हूँ।

सदगी कहो इसे या दीवानगी ‘दीपक’
मैं ले के तेरा नाम ग़ज़ल गाता हूँ।