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प्यासी नदी / राधेश्याम बन्धु

प्यासी नदी
रेत पर तडपे, अब तो बादल आ,

घिरी झुलसती लू में बहना,
कैसे घर आए?
भैया के हलबैल हाँफते,
सिर भी चकराए।
मुँह उचकाए
बछिया टेरे, अब तो बादल आ।

घट-घट पनघट, पोखर प्यासे
झुलस रहा मैदान,
कर्फ्यू-सा फैला सन्नाटा,
सड़के हैं सुनसान।
गौरैया के पंख
पुकारे, अब तो बादल आ।

सूख रहा मन का कनेर है,
ममता प्याऊ बन्द,
बादल भी दारू पी सोया,
मौसम है स्वच्छन्द।
दादी की गुडगुडी
बुलाए, अब तो बादल आ।