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प्यासे पत्थर / सुरेश यादव


बचपन में
पढ़ी और सुनी थी
प्यासे कौवे की कहानी
जिसने
अधभरे घड़े में
डाले थे कंकर -पत्थर
फिर a-
मुहाने तक भर आये पानी को
पिया था जी भर कर
चाहतों के अधभरे घड़े में डाले
मैंने भी
श्रम और वक्त के न जाने कितने पत्थर
पानी का इंतजार किया मेरे भी होठों ने
मुहाने तक आये, लेकिन -चीखते पत्थर
प्यासे थे बहुत जो
और उनमें थी पी जाने की गहरी ललक
खुद मुझको ही - घूंट घूंट कर ।