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प्यासे हिरन / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


किस तरह हम
तुम्हें समझाएँ
मन की बातें
भाषा बार-बार
बन जाती
है मजबूरी ।

सद्भावना-
के तुमने
अर्थ लिये मन भाए
सम्बन्धों के
प्यासे हिरन
नित-नित भरमाए ।

 जितना दौड़े
और बढ़ी है
उतनी दूरी ।
बालू पर तुम
चाहे जितना
इतिहास लिखो,
हर भोगी के
माथे पर संन्यास लिखो
लिखे हुए को
पढ़ना भी ही
बहुत जरूरी।
-0-(29-6-92:विश्वज्योति,अक्तुबर 92,अमृत सन्देश रायपुर,14- 8-94)