Last modified on 30 मार्च 2012, at 20:34

प्यास / इमरोज़

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इमरोज़  » संग्रह: आज की पंजाबी कविता
»  प्यास


आदमी ज़िन्दगी जीने को
शिद्दत से बड़ा प्यासा था
इस प्यास के संग चलता
ज़िन्दगी का पानी खोजता-तलाशता
वह एक चश्मे तक पहुँच गया
प्यास इतनी थी
कि वह न देख सका, न पहचान सका
कि यह ज़िन्दगी का चश्मा नहीं
वह तो प्यासे पानी का चश्मा था
प्यास बुझाने को जब वह
पानी के करीब गया
प्यासे पानी ने आदमी को पी लिया...

मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव