पडुआक वधू - ओढ़ि आवरन आभरन सुवरन कति छवि मंति
हरलि हमर रसिक क हृदय रंगिनि के रसवंति?।।1।।
कर बसि, भुज धरि, संग बसि, गुप चुप नित बतियाथि
केहन रंगिनी संग लय प्रिय न समक्ष लजाथि।।2।।
पडुआक वधू - ओढ़ि आवरन आभरन सुवरन कति छवि मंति
हरलि हमर रसिक क हृदय रंगिनि के रसवंति?।।1।।
कर बसि, भुज धरि, संग बसि, गुप चुप नित बतियाथि
केहन रंगिनी संग लय प्रिय न समक्ष लजाथि।।2।।