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प्रकृति सुंदरी / रचना उनियाल

मन को भाये षटऋतुओं के, नव नूतन परिधान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।

फागुन के रंगों को ओढ़े, आता है ऋतुराज।
भ्रमर सुनाता राग भ्रामरी, कुसुमाकर वनराज।।
अभिसारित वसुधा है करती, पुष्पों से शृंगार।
घर के आँगन में नव यौवन, करता है अभिसार।।
रूप कामिनी का खिल जाता, मंजुलता अभिमान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।

अंशुमान की कनक रश्मियों, का वसुधा पर रास।
ताल -तलैय्या नदियों में पय, भंगुरता आभास।।
कंठ शुष्क है छाँव विलोपित, सूर्य देव का ताप।
भू नयनों में धूल कणों का, मुखरित होता जाप।।
राकापति की सोम किरण ही, देती शीतल भान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।

पावस में श्यामा कुंतल की, नभ में लगती होड़।
जलधर गागर भर बूँदों की, करते गर्जन दौड़।।
प्यासी रमणी के अंगों में, हरियाली का रंग।
विरहानल में नेह धार को, पूर्ण करे यह गंग।।
मधुरिम-मधुरिम प्रेम वाटिका, राग-रागिनी मान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।
श्वेत वसन को ओढ़ें नगपति, लगते हैं अभिजात।
तरु पादप की शाखाओं से, विस्मृत होता प्रात।।
शीत लहर के वेगों से तों, जड़-चेतन भी मौन।
नीरव भावों में ही डोलें, उदित प्रश्न है कौन।।
समाधिस्थ है कानन बाला, रम्य भाव का ज्ञान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।

सुप्त अवस्था को तज जायें, पर्ण द्रुमों के लाल।
अचला के प्रांगण में बिछता, पात-पात का जाल।।
ग्रीष्म शिशिर शरद अरु हेमंत, वसंत हो बरसात।
प्रकृति कामिनी प्राण दायिनी, जीवन की सौग़ात।।
पंच तत्व हैं प्राण कोश के, प्रकृति नार वरदान।
धरती अंबर जल में झूमें, प्रकृति सुंदरी गान।।