दया-कृपा-करुणा ई सब किछु
सड़ल, पुरातन थिक परम्परा,
प्रगतिशीलताकेर नाम पर
आइ मनुजता रहल थरथरा।
लाज-धाख रखइत छी ककरो?
तँ भीतरसँ अहाँ फोंक छी,
माय-बापकेर कहल करै’ छी?
टहल करै’छी? बूड़ि लोक छी।
दया-कृपा-करुणा ई सब किछु
सड़ल, पुरातन थिक परम्परा,
प्रगतिशीलताकेर नाम पर
आइ मनुजता रहल थरथरा।
लाज-धाख रखइत छी ककरो?
तँ भीतरसँ अहाँ फोंक छी,
माय-बापकेर कहल करै’ छी?
टहल करै’छी? बूड़ि लोक छी।