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प्रगीत काव्य / कालीकान्त झा ‘बूच’

विपत्तिक बेर मे यौ मीत अपनो आन भ' जाइछ
बहनतहि खन करब की आर दुर्वह प्राण भ' जाइछ

शरद सुख सेज पर सदिखन किरण केर कोर जे शतदल
निदाघक काल तकरो लेल रिपु दिनमान भ' जाइछ

निमिष मे लुप्त भ' जाइछ खजाना राज सिंहासन
हेरा जाइछ तनुज प्रेयसि तनो तक दान भ' जाइछ

पुनः ई प्रश्न होइछ विश्व मे के आन के अप्पन
मेटा जाइछ निशा मोहक चकाचक ज्ञान भ' जाइछ

सुखक परतीति की दुःखे अहँक अप्पन सहोदर अछि
कि किछु दिन जाँचि क' देखू विलापो ज्ञान भ' जाइछ