अपने श्यामल वैभव में
अपनी देह और यौवन के साथ अकेली वह
अपने ही अंगों की धूप में
तपती वह--
अब जब हँसी से
लज्जा से
विस्मय से झुकी है
तो किसे पता
प्रणय में या प्रणति में
रचनाकाल :1990
अपने श्यामल वैभव में
अपनी देह और यौवन के साथ अकेली वह
अपने ही अंगों की धूप में
तपती वह--
अब जब हँसी से
लज्जा से
विस्मय से झुकी है
तो किसे पता
प्रणय में या प्रणति में
रचनाकाल :1990