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प्रणय या प्रणति / अशोक वाजपेयी

अपने श्यामल वैभव में
अपनी देह और यौवन के साथ अकेली वह
अपने ही अंगों की धूप में
तपती वह--
अब जब हँसी से
लज्जा से
विस्मय से झुकी है
तो किसे पता
प्रणय में या प्रणति में


रचनाकाल :1990