सादर सस्नेह प्रणाम आज, उन चरणों में शतकोटिवार!
माता के लाल लड़ैते थे,
भगिनी के वीर बाँकुरे थे,
सौभाग्यवान जीवन के थे,
जीवन थे प्राण-पियारे थे।
वे सब की भावाी आशा थे, थे जन्मभूमि के होनहोर!!
वे देश-प्रेम मतवाले थे,
माता के चरण-पुजारी थे,
पुरुषों मंे थे वे पुरुष-सिंह,
कर्त्तव्य-धर्म-ब्रत-धारी थे!
प्राणों को हँसकर छोड़ दिया, पर प्राण न तजा अपना अपार!!
वे ज्ञानवान थे, योगी थे,
अनुपम त्यागी थे, सज्जन थे,
वे वीर हठीले सैनिक थे,
तेजस्वी थे, विद्वज्जन थे!
कर्त्तव्य-कर्म की ओर बढ़े, फल की सारी सुध-बुध बिसार!!
तम-पूर्ण निशा में ज्योति हुए,
पथ-दर्शक कंटकमय मग के,
मरकर भी हैं वे अमर बने,
आदर्श हुए भावी जग के!
मंगलमय था बलिदान और वे थे भारतमाँ के शृँगार!
सादर सस्नेह प्रणाम आज, उन चरणों में शतकोटिवार!!