स्नेह हीन जीवन-दीपक की
होती जाती है ज्योति मंद !
मिलती प्रतिपग पर असफलता,
बढ़ती जाती है व्याकुलता,
जीवन-सुख के सब द्वार बंद !
जड़ता का अँधियारा छाया,
बरखा-आँधी का युग आया,
हलचल प्रतिपल अन्तर्द्वन्द्व !
1945
स्नेह हीन जीवन-दीपक की
होती जाती है ज्योति मंद !
मिलती प्रतिपग पर असफलता,
बढ़ती जाती है व्याकुलता,
जीवन-सुख के सब द्वार बंद !
जड़ता का अँधियारा छाया,
बरखा-आँधी का युग आया,
हलचल प्रतिपल अन्तर्द्वन्द्व !
1945