कल रणमण्डल में केशव का
निश्चय खण्डित कर दूँगा प्रण।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
निश्चय उनकी ही इच्छा थी
छिड़ गया भयङ्कर क्रूर समर।
लक्षित होते हैं भाव चपल
अब भी उनके भोले मुख पर।
निज शस्त्र न धारण करने का
अभिनय तो मात्र दिखावा है।
है सर्वविदित, पाण्डव सेना
रहती जिसके बल पर निर्भर।
यदि सत्य प्रयास किये होते
प्रारम्भ न हो पाता यह रण।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
जिसका भी शीश कटेगा वह
होगा मेरे ही आँगन का।
मैं व्यर्थ लड़ रहा युद्ध यहाँ
कुछ लक्ष्य न मेरे जीवन का।
मेरा कुल वंश जल रहा है
मैं विवश, न रक्षा कर पाया।
नारायण रण रुकवा देंगे
मिथ्या भ्रम था अन्तर्मन का।
होंगे मेरे ही उपवन के
लुण्ठित रण में प्रत्येक सुमन।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
रण के विरुद्ध जब था अर्जुन
स्वजनों के प्रति होकर निहाल।
तब प्रकट हुआ रणमण्डल में
गीता का अद्भुत इंद्रजाल।
जग जीवन सारा नश्वर है
सुनकर यह मायावी दर्शन।
प्राणों-सा प्रिय निश्छल अर्जुन
हो गया भयानक महाकाल।
नाटक था शान्तिदूत बनना
ये तो ठहरे बस नारायण।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
कारण कोई हो जीवन में
जितना भी प्रण ठाना मैंने।
उनका निर्वहन करूँ, अपना
अनिवार्य कर्म माना मैंने।
गुरुवर श्री परशुराम से भी
कर चुका भयानक द्वन्दयुद्ध।
गुरु की आज्ञा भी ठुकराकर
निज बचनों को माना मैंने।
जो होगा श्रेयस्कर होगा
कहता है मेरा अन्तर्मन।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
प्रस्तर जैसा होकर कठोर
तृणभर न स्नेह दर्शाऊँगा।
पाण्डव के सर्व सैनिकों को
तिनके की भाँति नचाऊँगा।
ऐसा घातक प्रहार होगा
संस्मरण रहेगा युग-युग तक।
दिव्यास्त्रों का करके प्रयोग
भीषण विध्वंस मचाऊँगा।
असमञ्जस में पड़ जायेगा
यह ध्वंस देख माधव का मन?
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
पैने अचूक विध्वंसक सर
बरसायेंगे वह उग्र अनल।
अम्बर से बरसेगी ज्वाला
दहकेगा सारा युद्धस्थल।
या अंधकार हो जायेगा
अस्त्रों-शस्त्रों की झंझा में।
सूरों के क्षतविक्षत शव से
पट जायेगा सारा भूतल।
घातक बाणों से तहस नहस
कर दूँगा जब उनका स्यन्दन।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
निश्चय ही अब अगला प्रहार
होगा मेरा अत्यंत प्रबल।
रण की सम्पूर्ण व्यूह रचना
कर दूँगा क्षण भर में निष्फल।
सारी सेना हो जाएगी
मेरे बाणों से छिन्न-भिन्न।
सर्वत्र पार्थ को घिरा देख
कुछ और न मिल पायेगा हल।
क्रोधित हो चक्र लिये मुझपर
तब टूट पड़ेंगे मधुसूदन।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥
कल रणमण्डल में केशव का
निश्चय खन्डित कर दूँगा प्रण।
अर्जुन का प्राण बचाने को
कर लेंगे निश्चित शस्त्र ग्रहण॥