एक रजः कण सूक्ष्म सा
चक्रवात की चपेट में बन गया विराट् सा
वायु की अपरिमित शक्ति के
दृढ़ आधार पर
वास्तविकताओं से परे
सामर्थ्य को भूल
प्रचण्ड अग्रि की भांति
अरू सशक्त लौह सा समझ
अकस्मात् ही वह अहंकारी बोला
कौन सा धर्म
कौन सा भगवान्
क्या पुण्य? क्या पाप?
वायु के भंवर से निष्कासित हो
जब पुनः स्थापित हुआ
तब हल्के दबे स्वर में
एक प्रतिध्वनि विकसित हुई
हे भगवान! हे भगवान!