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प्रतिरोध / नीरा परमार

तुम्हारे माथे पर / यह
भारी डगमगाती विष्ठा की बाल्टी नहीं
तुम्हारी हैसियत है
जो सदियों से
मनुष्य को समाज ने
अपने और तुममें—
अन्तर याद दिलाने के लिए रखा है

उनके लिए
यही है तुम्हारा वजूद जो तुम्हें अपने और—
इस विष्ठा-सने झाड़ू
अस्पृश्य बाल्टी/ भिनकती मक्खी में
कोई फ़र्क़ महसूस करने नहीं देता
उन सबके लिए
क्या यह कम राहत नहीं
कि तुम
पीढ़ियों से उनके और
उनके पिताओं-दादाओं-परदादाओं के लिए
बिना व्यवधान प्रतिरोध के
रोज़ तड़के आती रही हो
बिना सवाल किये
जुगुप्सित बाल्टी कसकर हाथों से भींचे
उस नरक की ओर
बेझिझक बढ़ जाती रही हो
जिसके छुआ जाने भर से
चमड़ी जूठी पड़ जाती है
माथे पर तुम्हारे जब तक यह सनद है
तब तक उनकी व्यवस्था को राहत है कि
तुम्हें किसी
नाम-पहचान-अधिकार की
परवाह न होगी!
याद रखो माथे पर जब तक
यह भरी डगमगाती विष्ठा की बाल्टी है
तुम्हें अपने और इस विष्ठा-सने झाड़ू —
अस्पृश्य बाल्टी, भिनकती मक्खी में
कोई फ़र्क़ महसूस नहीं होगा!