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प्रतीक्षक / महेन्द्र भटनागर

अभावों का मरुस्थल

लहलहा जाये,

नये भावों भरा जीवन

पुनः पाये,

प्रबल आवेगवाही

गीत गाने दो !


गहरे अँधेरे के शिखर

ढहते चले जाएँ,

उजाले की पताकाएँ

धरा के वक्ष पर

सर्वत्र लहराएँ,

सजल संवेदना का दीप

हर उर में जलाने दो !

गीत गाने दो !


अनेकों संकटों से युक्त राहें

मुक्त होंगी,

हर तरफ़ से

वृत्त टूटेगा

कँटीले तार का

विद्युत भरे प्रतिरोधकों का,

प्राण-हर विस्तार का !


उत्कीर्ण ऊर्जस्वान

मानस-भूमि पर

विश्वास के अंकुर

जमाने दो !

गीत गाने दो !