चारों ओर से अलग-अलग क़िस्म की आवाज़ें आ रही हैं।
दो महीने नहीं लिख पाने की तकलीफ़ को धन्यवाद; एक घण्टा आवाज़ों के साथ बैठना आसान हो गया ।
ऐसे वक़्त कविता और चित्रकला आपस में गुफ़्तगू करते हैं ।
थोड़ी दूर सामने छत से एक टेलीविज़न लटका हुआ है । टेलीविज़न में लोग तालियाँ बजा रहे हैं । टेलीविज़न के ऊपर लोहे की पाइपों में बने मचान पर बैठा कामगार बिजली की तारों से खेल रहा है । जो मुझे खेल लगता है, उसे वह रोटी दिखता है ।
लाल स्कर्ट सफ़ेद ब्लाउज़ । थोड़ी देर पहले आइने में देखते हुए उसने ख़ुद को थप्पड़ मारा है । कारण जानने से पहले उसके साथ आया लड़का मुझसे टाइम पूछ रहा है । हर जगह वक़्त की घोषणा हो रही है, हर कोई वक़्त पूछ रहा है। वक़्त पूछने से दुनिया हो जाती है जो वह है । टेलीविज़न पर आदमी को फाँसी दिए जाने की ख़बर आ जाती है । बहुत सारे लोग ख़बरें और ख़बरों की ब्रेक्स सुनते हैं । एकटक ताकती उनकी आँखों में मानव और निष्प्राण मशीनें एक से बिकते हैं ।
मैं लिखता हूँ ख़बरें जिसको सत्यापित करने के लिए मेरे पास कोई पुराण नहीं है, कोई विज्ञान नहीं है । ख़बरें आवाज़ें। आवाज़ें ख़बरें। प्रतीक्षा लम्बी है। प्रतीक्षा कभी ख़त्म नहीं होती। मैं नहीं रहूँगा, मेरी प्रतीक्षा रहेगी ।
दो महीने नहीं लिख पाने की तकलीफ़ को धन्यवाद; एक घण्टा आवाज़ों के साथ बैठना आसान हो गया।।