लौटूँगा जब तुम चली जाओगी शहर,
और मुँह छुपा लूँगा मैं तुम्हारी रुई की गरम सदरी में ।
समझ जाऊँगा कल से हो रही बून्दाबान्दी औ’ बदली में,
कई बार तुम निकली थीं घर से बाहर ।
बरामदे से बार-बार बाहर फाटक तक तुम भागी थीं,
लौटी थीं फिर वहाँ से वापिस उदासी के साथ ।
कितना अच्छा है कि प्यार के नशे में डूबी-जागी थीं,
इन्तज़ार कर रही थीं मेरा, पियासी थीं आँख ।
1982
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
Андрей Вознесенский
Ожидающая
Я вернусь когда в город уйдешь,
и уткнусь в твой плашок на ватине.
И пойму, что шел с вечера дождь
и что из дому ты выходила.
Выбегала с крыльца до ворот,
возврашалась понуро к крылечку.
Хорошо, когда любит и ждет,
но от этого толька не легче.
1982