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प्रतीक्षा / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / अनिल जनविजय

लौटूँगा जब तुम चली जाओगी शहर,
और मुँह छुपा लूँगा मैं तुम्हारी रुई की गरम सदरी में ।
समझ जाऊँगा कल से हो रही बून्दाबान्दी औ’ बदली में,
कई बार तुम निकली थीं घर से बाहर ।

बरामदे से बार-बार बाहर फाटक तक तुम भागी थीं,
लौटी थीं फिर वहाँ से वापिस उदासी के साथ ।
कितना अच्छा है कि प्यार के नशे में डूबी-जागी थीं,
इन्तज़ार कर रही थीं मेरा, पियासी थीं आँख ।
1982

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
            Андрей Вознесенский
                  Ожидающая

Я вернусь когда в город уйдешь,
и уткнусь  в твой плашок на ватине.
И пойму, что шел с вечера дождь
и что из дому ты выходила.

Выбегала с крыльца до ворот,
возврашалась понуро к крылечку.
Хорошо, когда любит и ждет,
но от этого толька не легче.

1982