दूर पर्वत पार से-
जैसे
पहाड़ी राग-
बुलाएगा कभी,
इसी प्रतीक्षा में,
ओढ़ कर
सन्नाटे को-
बिछा हुआ हूं,
रेत पर-
कब से !
दूर पर्वत पार से-
जैसे
पहाड़ी राग-
बुलाएगा कभी,
इसी प्रतीक्षा में,
ओढ़ कर
सन्नाटे को-
बिछा हुआ हूं,
रेत पर-
कब से !