…और एक दिन
उसके जाने के बाद
उसकी लिखी वसीयत खँगाली गई।
कमाई —
धैर्य और प्रतीक्षा।
लॉकर नहीं कोई,
दीवारों ने मुँहज़बानी सुनाई।
समय गवाह था —
न कोई कोर्ट-कचहरी,
न कोई दावा करने वाला।
विडंबना की गहरी घड़ी थी वह...
कि
उस एक दिन,
वे पाँव से कुचली
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