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प्रत्युपकार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

कलकल छलछल नदी बहै छल चुट्टी एक पियासलि
आयलि पीबय पानि लहरिमे पड़ि सहसा भसियाइलि
परबा एक तीर-तरुपर बैसल छल सदय सुजान
पात खसाओल, लटकि जाहिपर कहुना पौलक त्रान
किछु दिन बीतल, तरुपर रीतल परबा छल निश्चिन्त
आबि व्याध क्यौ तीर उठाकय बेधय चाहल हन्त!
देखि दृश्य ई अति कृतज्ञ चुट्टी चट कटकल जाय
पटकल पैर व्याध, बाधित भय छुटल तीर कतिआय
ताबत उड़ि परबा तरुवरसँ जीवन अपन बचौल
उपकारक फल पाबि प्रेमसँ परम प्रभुक यश गौल