प्रथम ग्रास
मेरे उस प्रिय को
जो सदा पास
उसकी भूख में है
मेरी भी भूख
उसकी प्यास में है
मेरी भी प्यास।
उसका एक कौर
मुझे जो मिला
युगों- युगों की क्षुधा
हो गई शान्त
निहारूँ भरूँ नैन
उसी का रूप।
सहलाए मुझे ज्यों
सर्दी की धूप
कण्ठ में लरजता
सिन्धु -सा प्यार
दौड़ती लहर- सी
छूते ही पोर
आँखों से बरसती
वासन्ती भोर
पलकों पे उतरें
सौ सौ गुलाल
चूमूँ अनन्त तक
मैं पोर -पोर
करे तुझमें मन
सदा अवगाहन।
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